बीजेपी सरकार का डर: कब सुधरेगी सत्ता की मनोवृत्ति?

बीजेपी सरकार कब सुधरेगी? वही सिंघु बॉर्डर दोबारा से। पहले किसान और अब सोनम वांगचुक को डिटेन कर लिया।

बीजेपी सरकार की ओर से विरोध की आवाज़ों को दबाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। पहले किसान आंदोलन और अब पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक और उनके साथ आए 150 लद्दाखी लोगों को हिरासत में ले लिया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 56 इंच का सीने वाला डायलॉग जब भी याद आता है तो हंसी भी आती है और दुख भी। हंसी इसलिए कि 56 इंच का सीना तो केवल एक भैंस का हो सकता है, इंसान का नहीं। और दुख इसलिए कि हमारे प्रधानमंत्री कुछ भी अनाप-शनाप बोल देते हैं। शायद उन्हें खुद भी पता नहीं कि इस डायलॉग का मतलब क्या होता है।

जब किसान आंदोलन हुआ, तब हमने देखा कि कैसे अपने ही देश के किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए बॉर्डर पर किलेबंदी कर दी गई। ये वो बॉर्डर थे, जो हमने पाकिस्तान के साथ भी नहीं देखे थे। हरियाणा-दिल्ली बॉर्डर पर इस आंदोलन के दौरान ऐसी किलेबंदी की गई थी, जैसे देश की सीमाओं पर दुश्मन से रक्षा हो रही हो। इस आंदोलन में 700 किसानों की मौत हो गई, लेकिन प्रधानमंत्री का 56 इंच का सीना तब भी फूला रहा।

इसके बाद हमने देखा कि किस तरह हमारे देश के गोल्ड मेडलिस्ट पहलवानों को दिल्ली पुलिस ने घसीटा, जब वे जंतर मंतर पर धरने पर बैठे थे। यह दृश्य पूरे देश ने देखा और शायद ही कोई इसे भुला पाया हो।

अब, फिर से वही कहानी दोहराई गई है। 30 सितंबर 2024 को, सोनम वांगचुक ने ट्वीट किया कि उन्हें और उनके साथ आए 150 लद्दाखी लोगों को हरियाणा पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। ये लोग गांधी जयंती के दिन राजघाट पर शांतिपूर्ण तरीके से श्रद्धांजलि देने जा रहे थे, लेकिन उन्हें रास्ते में ही रोक लिया गया।

सोनम वांगचुक, जिन्हें हम सब ‘3 इडियट्स’ के रैंचोड़दास चांचड़ के किरदार से बेहतर जानते हैं, ने मार्च 2024 में एक क्लाइमेट फास्ट की शुरुआत की थी। 21 दिन के उपवास के बाद, उन्होंने लद्दाख के बॉर्डर क्षेत्रों में मार्च करने का फैसला किया था। लेकिन बीजेपी सरकार इस शांतिपूर्ण मार्च से इतनी डर गई कि पूरे लद्दाख को एक पुलिस छावनी में बदल दिया।

25 सितंबर 2024 को हमने सोनम वांगचुक और 150 लद्दाखी लोगों को चंडीगढ़ में देखा था। 18 से 88 साल तक के मोंक, छात्र और आम लद्दाखी नागरिक, जिन्होंने लंबी दूरी तय की थी, के पैरों में छाले तक पड़ गए थे। यह यात्रा 1 सितंबर 2024 को शुरू हुई थी, और 2 अक्टूबर को इन्हें राजघाट पहुँचना था। लेकिन सिंघु बॉर्डर पर ही इन्हें हिरासत में ले लिया गया।

मोदी और शाह से सवाल: आप इतने डरते क्यों हैं?

मेरा सरल सा सवाल है प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से – आप लोग इतनी शांति से प्रदर्शन करने वाले लोगों से इतना डरते क्यों हैं?

क्या ये लोग किसी तरह से भारत के लिए खतरा हैं? लोकतंत्र में हर नागरिक को शांतिपूर्वक विरोध करने का हक है। यह सरकार इस अधिकार को कब तक कुचलती रहेगी? क्या अब इस देश में गांधी जयंती के दिन राजघाट पर जाना भी अपराध हो गया है?

हमने देखा है कि जब छात्र अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करते हैं, तो उन्हें पुलिस के डंडे से पीटा जाता है। किसानों पर आंसू गैस छोड़ी जाती है, और अब सोनम वांगचुक और उनके भोले-भाले लद्दाखी साथियों के साथ भी ऐसा ही सलूक किया जा रहा है। यह कौन सा न्याय है?

देश में नफ़रत और अंधभक्तों की टोली

दूसरी तरफ, सोशल मीडिया पर एक नफरती जमात है जो बिना कुछ जाने या समझे किसी को भी देशद्रोही करार दे देती है। जब किसान आंदोलन करने आए थे, तो उन्हें खालिस्तानी कहा गया। जब पहलवान बेटियाँ धरने पर बैठीं, तो उन्हें भी देशद्रोही कहा गया। और अब सोनम वांगचुक जैसे सच्चे देशभक्त को चीन का एजेंट कहा जा रहा है।

मुझे शर्म आती है उन लोगों पर जिन्होंने अंधकार की पट्टी अपनी आँखों पर बाँध रखी है। असली गद्दार वही लोग हैं जो दूसरों को गद्दार कह रहे हैं। इन अंधभक्तों को पैसे की लालच में बिके हुए मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा गुमराह किया जा रहा है।

इस सरकार की नाकामी और इतिहास की अनदेखी

लद्दाखी लोगों को राजघाट जाने से रोकने का यह प्रयास, इस सरकार की हर जगह नाकामी को दिखाता है। साफ़ तौर पर यह कहावत सही बैठती है कि “दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है।”

मुझे लगता है कि मोदी और शाह ने भारत का इतिहास नहीं पढ़ा है। अगर पढ़ा होता, तो वे समझ गए होते कि भारत कितना विशाल और महान है। यह गौतम बुद्ध, आदि शंकराचार्य, और महादेव के भक्तों का देश है। क्यों ये दोनों मिलकर इस देश की शांति को भंग कर रहे हैं?

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