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चुनाव के समय भारत में क्यों बढ़ जाते हैं आतंकी हमले – क्या राजनीती और इन हमलो में कोई संबंध हैं?

1980 से लेकर आज तक भारत में 12000 से जयादा आतंकी हमले हो चुके हैं | लाखों की सहादत के बाद भी यह सिलसिला रुकते हुए नहीं दिखता | राजनेता आते जाते रहे और सभी ने कड़ी निंदा से काम चला लिया | चुनाव के समय आतंकी हमलो में वृद्धि होती देखि गई हैं | क्या आतंकी हमलो से राजनीती का कोई संबंध हैं

भारत एक विभिन्नातों में एकता का देश हैं यहाँ सभी जाति धर्म और महजब के लोग एक साथ प्रेम से रहते हैं जिसे कहा भी जाता हैं की भारत विभिन्नातों में एकताओं का देश हैं यह बात प्रत्येक भारतीय के लियें गर्व की बात हैं | लेकिन इतिहास गवाह हैं इसी देश में जाति धर्म के नाम पर राजनेता समय समय पर हमे आपस में लड़ाते रहे हैं जिसका नतीजा यह हुआ की कश्मीर में हमारे अपने ही बच्चे आतंकवादी बन गए और बंगाल,आसाम और छत्तीसगढ़ में नक्सली |

04 अप्रैल के छत्तीसगढ़ के बीजापुर हमले में हमारे 22 जवान शहीद हो गए और कुछ अभी भी लापता हैं| आलम यह था की हमारी सेना के शहीद जवानो की लाश भी कई घंटो के बाद उठाई गए, पूरा देश शोक में हैं लेकिन राजनेता अब भी आकर टीवी पर भाषणबाजी दे रहे हैं | देश के गृह मंत्री अमित शाह ने बयान दिया हैं की बदला लेंगे | लेकिन सोचने वाली बात तो यह हैं की सरकारे आती जाती रही लेकिन हमारे देश के अपने ही लोग साल दर साल आतंक के चपेट में आते रहे | सभी ने बस कड़ी निंदा की और निकल गए और चुनाव प्रचार में लग गए |

पुलवामा हमले के समय भी इन्ही नेताओ ने बड़ी बड़ी बातें करके अपनी राजनीती चमकाई थी | हमने कब और किस से बदला लिया वो सारा देश जनता हैं आज तक पुलवामा हमले में कोई भी बड़ा सुराग हाथ नहीं लगा हैं | या फिर ऐसे बोल सकते हैं की कोई बड़ी जांच आजतक करी ही नहीं गई |

हमारी टीम ने जब इन आतिंकी हमलो पर एक शोध किया तो पता चला की चुनाव के समय ऐसे आतिंकी हमलो में अचानक से बढोतरी होती हैं | क्या इन आतंकी हमलो का राजनीती से कोई संबंध हैं या यह सिर्फ एक इत्तेफाक हैं यह आप खुद तय करे |

1) जम्मू कश्मीर के उडी सेक्टर सेना के कैंप में 18 सितम्बर 2016  भीषण आतंकी हमलें ने पुरे देश को दहला दिया जिसके अंदर 16 जवान शहीद हुयें थे जबकि 20 से अधिक घायल हुयें थे जबकि असम विधानसभा चुनाव 2016 में संपन्न हुयें थे 4 अप्रेल 20 16 से 11 अप्रैल 2016 चुनाव सम्पन्न हुयें थे|

2) 1992 में देश में भाजपा द्वारा राम रथ यात्रा निकाली गई थी जिसमे देश में बड़ी अशांति फैली थी और देश में अस्थिरता का फ़ायदा देश – विदेश में बैठें आतंकी संगठनो ने देश में और अस्थिरता , उन्माद जहर फेलाने के लियें 12 मार्च 1993 में भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में सीरियल धमाके कियें जिसके चलते 257 से अधिक लोग मारें गयें और 713 लोग घायल हुयें , इन धमाकों के पीछे दाउद और उसकी कंपनी डी का हाथ था |   

3) कोयम्बटूर धमाका – 14 फरवरी 1998 में इस्लामिक ग्रुप अल उम्माद ने कोयम्बटूर में 11 बड़ी भीड़भाड़ वाली जगह पर 12 बम धमाके कियें जिसमे 60 लोगों की मौत हो गई थी और 200 लोग घायल हो गयें थे गौरतलब हैं 1998 में भी तमिलनाडु में भारतीय आम चुनाव ( लोकसभा ) थे |

4) जम्मू कश्मीर में विधानसभा में हमला – 1 अक्टूबर 2001 जैश ए मोहम्मद ने 3 आत्मघाती हमलावरों ने विधानसभा भवन पर कार बम हमला किया। इसमें 38 लोग मारे गए।

जबकि 2002 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुयें थे |

5) भारतीय संसद पर हमला – 13 दिसम्बर 2001 में लश्करे तैयबा और जैश मोहम्मद के 5 फिदायीन आतंकवादी संसद भवन घुस गयें थे जबकि हमारें सुरक्षा बलों ने सभी आतंकियों को मार गिराया और आतंकी मंसूबे को नाकाम कर दिया जब यह हमला हुआ संसद सत्र चल रहा था , हमलें में 6 पुलिसकर्मी और 3 संसद भवन के कर्मी मारें गयें थे  गौरतलब हैं की 2002 में उत्तर प्रदेश राज्य सहित अन्य राज्यों में चुनाव थे |

6) अक्षर धाम मंदिर पर हमला – 24 सितम्बर 2002   लश्कर और जैश ए मोहम्मद के 2 आतंकी मुर्तजा हाफिज यासिन और अशरफ अली मोहम्मद फारूख दोपहर 3 बजे अक्षरधाम मंदिर में घुस गए। इनके हमले में 31 लोग मारे गए जबकि 80 लोग घायल हो गए थे। गौरतलब हैं भारत में 27 फरवरी 2002 को गुजरात में गोधरा काण्ड हुआ था जिसके सभी पहलों से आप भली भाती अवगत हैं |

7) अखनूर में हुए आतंकी हमले– 22 जुलाई, 2003 को जम्मू कश्मीर के अखनूर में हुए आतंकी हमले में 8 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए गौरतलब हैं इस वक्त राजस्थान ,मध्यप्रदेश , सहित अन्य राज्यों में चुनाव थे साथ ही केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी जिसमे बड़ा उठा पटक हो रहा था – राजनीति में अस्थिरता थी |

8) दिल्ली सीरियल बम धमाकें – 29 अक्टूबर 2005 में दीवाली से 2 दिन पहले आतंकियों ने 3 बम धमाके किए। 2 धमाके सरोजनी नगर और पहाड़गंज जैसे मुख्य बाजारों में हुए। तीसरा धमाका गोविंदपुरी में एक बस में हुआ। इसमें कुल 63 लोग मारे गए जबकि 210 लोग घायल हुए थे। गौरतलब हैं बिहार में विधानसभा चुनाव 2005 में सम्पन्न हुयें थे |

9) मुंबई ट्रेन धमाका – 11 जुलाई 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में अलग-अलग 7 बम विस्फोट हुए। सभी विस्फोटक फर्स्ट क्लास कोच में बम रखे गए थे। इन धमाकों में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ था। इसमें कुल 210 लोग मारे गए थे और 715 लोग जख्मी हुए थे। महाराष्ट्र के मालेगांव में 8 सितंबर, 2006 को हुए तीन धमाकों में 32 लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हुए।

 10) श्रीनगर में हुए हमले – 5 अक्टूबर 2006 श्रीनगर में हुए हमले 7 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए। 22 जुलाई, 2003 को जम्मू कश्मीर के अखनूर में हुए आतंकी हमले में 8 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए।

11) असम में धमाके : राजधानी गुवाहाटी में 30 अक्टूबर 2008 को विभिन्न जगहों पर कुल 18 धमाके आतंकियों द्वारा किए गए। इन धमाकों में कुल 81 लोग मारे गए जबकि 470 लोग घायल हुए।

12) 26 / 11 मुंबई आतंकी हमला – 26 नवम्बर का दिन भारत के इतिहास में बड़ा ख़ास हैं इस दिन भारत का संविधान बन के तैयार हुआ था और इस दिन को संविधान दिवस के नाम से जाना जाता हैं इस दिन 26 नवम्बर 2008 को पाकिस्तान से आयें 10 आत्मघाती हमलावरों ने सीरियल बम धमाके कर कई जगह अंधाधुंध फायरिंग की थी , आतंकियों ने नरीमन हाउस , होटल ताज ,होटल ओबराय को कब्जे में ले लिया था इस आतंकी हमलें में करीब 180 लोग मारे गयें थे और करीब 300 लोग घायल हुयें थे इसमें आतंकी कसाब पकड़ा गया था जिसे मुकदमे के बाद फांसी दे दी गई थी     

13) पुणे की जर्मन बेकरी – पुणे की जर्मन बेकरी में 10 फरवरी, 2010 को हुए बम धमाके में नौ लोग मारे गए और 45 घायल हुए।

14) बेंगलुरु चिन्नास्वामी स्टेडियम – बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर 17 अप्रैल, 2010 में हुए दो बम धमाकों में 15 लोगों की मौत हो गई। 

15) पुलवामा आतंकी हमला – देश आहत : 14 फरवरी 2019 दोहपर करीब 3 बजें जम्मू कश्मीर में ऐसा बड़ा आतंकी हमला जिसमे देश में शोक कायम कर दिया  इस आतंकी हमले में हमने 40 जवान शहीद हुयें थे   

नक्सलवाद का जन्म और देश में नक्सली हमलें

नक्सलवाद का जन्म पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से हुआ था भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू माजुमदार, कानू सान्याल और जांगल संथाल ने 1969 में सत्ता के ख़िलाफ़ सशत्र आंदोलन शुरू कर दिया | कम्युनिस्ट नेता माजुमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग से बदें प्रशंसक थे इस लियें नक्सलवाद को माओवाद भी कहते हैं

1968 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ मार्क्ससिज्म एंड लेन‌िनिज्म (CPML) का गठन किया गया जिनके मुखिया दीपेन्द्र भट्टाचार्य थे। यह लोग  काल मार्क्स  और लेनिन  के सिद्धांतों पर काम करने लगे, क्योंकि वे उन्हीं से ही प्रभावित थे। वर्ष 1969 में पहली बार चारु माजूमदार और कानू सान्याल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में सत्ता के खिलाफ एक व्यापक लड़ाई शुरू कर दी। भूमि अधिग्रहण को लेकर देश में सबसे पहले आवाज नक्सलवाड़ी से ही उठी थी। आंदोलनकारी नेताओं का मानना था कि ‘जमीन उसी को जो उस पर खेती करें’।

नक्सलवाड़ी से शुरु हुआ इस आंदोलन का प्रभाव पहली बार तब देखा गया जब पश्चिम बंगाल से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा। इस आंदोलन का ही प्रभाव था कि 1977 में पहली बार पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी सरकार के रूप में आयी और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बनें |

सामाजिक जागृति के लिए शुरु हु्ए इस आंदोलन पर कुछ सालों के बाद राजनीति का वर्चस्व बढ़ने लगा और आंदोलन जल्द ही अपने मुद्दों और रास्तों से भटक गया। अब यह संगठन गैरकानूनी रूप से समांतर सत्ता चलाने का प्रयास कर रहा हैं जिसके चलते भारत की सेना और नक्सली लोगों में आपसी मुठभेड़ होती रहती हैं |

भारत में नक्सलवाद की बड़ी घटनाएं

4 अप्रैल 2021 छतीसगढ़ के सुकमा – बीजापुर में हुयें नक्सली हमलें में 30 जवान शहीद हुयें हैं जबकि 4 नक्सली मारें गयें हैं | गौरतलब हैं की भारत के दो राज्य आसाम और बंगाल में चुनाव चल रहे हैं और इसी साल (2021) में ही जम्मू और कश्मीर, केरल, तमिल नाडु और पुडुचेर्री में चुनाव होने वाले हैं|

डीगपु न्यूज़ विश्लेषण

उपरोक्त सभी घटनाक्रम को देखते हैं तो अनुमान लगता हैं की देश में सत्ता प्राप्ति और अशांति के लियें देसी और विदेशी ताकते प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से देश की अखंडता के साथ खिलवाड़ और उसे तोड़ने की कोशिश करती रहती हैं | जब भी ऐसे आतंकी हमले होते हैं तो जान गवाने वाले और लेने वाले दोनों ही पक्षों ने भारत की धरती पर जन्म लिया हैं | जब एक गरीब गांव का आदमी अपने बच्चो के साथ हथियार उठाकर ऐसे संगठनों का साथ देने लगे तो हम और आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की हम कहा गलत हो गए | दूसरी तरफ जब एक जवान बच्चा गांव से निकल कर फ़ौज में भर्ती होता हैं तो क्या वह सिर्फ शहीद होने आता हैं , शायद नहीं | लाखो जवानो की सहादतो के बाद भी कुछ नहीं बदला या फिर शायद कोई बदलना ही नहीं चाहता |

जिस तरह पाकिस्तान की सेना और सत्ताधारी पक्ष सारी जिंदगी कश्मीर का अलाप रो रो कर अपनी सत्ता कायम करने में कामयाब हो गए क्या उसी तरह भारत के सत्ताधारी भी उसी पंक्ति में शामिल हैं |

समुंद्र मंथन के समय भगवन शिव ने कहा था की जिस तरह आज मंथन के द्वारा अमृत की प्राप्ति हुई हैं उसी तरह समय समय पर समाज के सभी वर्गों को एककत्रित होकर आत्म मंथन करना पड़ेगा | शायद भारत में अब आत्म चिंतन का समय आ चूका हैं |

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